उद्धव और राज ठाकरे आज एकसाथ रैली करेंगे:सरकार के हिंदी से जुड़े आदेश रद्द होने पर विजय उत्सव, 20 साल बाद एक मंच पर दिखेंगे 

महाराष्ट्र में हिंदी को लेकर जारी विवाद के बीच उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे मुंबई में आज संयुक्त रैली करेंगे। इसे ‘विजय रैली’ नाम दिया गया है। दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने इस साल 16 और 17 अप्रैल को हिंदी अनिवार्य करने से जुड़े दो आदेश दिए थे। इसके विरोध में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने 5 जुलाई को संयुक्त रैली का ऐलान किया था। बाद में 29 जून को सरकार ने दोनों आदेश रद्द कर दिए। इस पर उद्धव दावा किया कि विपक्षी पार्टियों के विरोध की वजह से सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा। उन्होंने 5 जुलाई की विरोध रैली को भी विजय रैली के रूप में करने की बात कही थी। करीब 20 साल बाद उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे एक मंच पर नजर आएंगे। राज ठाकरे ने 2006 में शिवसेना छोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के नाम से नई पार्टी बनाई थी। MHS कार्यकर्ताओं ने गुजराती दुकानदार से मारपीट की थी महाराष्ट्र के ठाणे में राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के कार्यकर्ताओं ने 30 जून को एक गुजराती दुकानदार से मारपीट की थी। दुकानदार ने उनसे पूछा था कि मराठी बोलना जरूरी क्यों है। इस पर MNS कार्यकर्ता उससे कहते हैं कि ये महाराष्ट्र है इसलिए यहां मराठी बोलना ही होगा। मामले में शुक्रवार को MNS के 7 कार्यकर्ताओं पर FIR दर्ज हुई। वहीं, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि मराठी का सम्मान होना चाहिए, पर मराठी के नाम पर गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं करेंगे। जानिए, महाराष्ट्र में भाषा विवाद क्या है… जानिए, उद्धव और राज संयुक्त रैली पर कैसे जारी हुए… उद्धव बोले थे- हिंदी के खिलाफ नहीं, इसे थोपना सही नहीं शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा था कि महायुति सरकार का फैसला राज्य में ‘लैंग्वेज इमरजेंसी’ घोषित करने जैसा है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी पार्टी हिंदी के भाषा के रूप में विरोध नहीं करती, लेकिन महाराष्ट्र में इसे थोपने के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि ऐसा करके महायुति अपनी राजनीति के लिए मराठी और हिंदी भाषी लोगों के बीच ‘सद्भाव को जहर देना’ चाहती है। शिवसेना (यूबीटी) सरकार के फैसले का तब तक विरोध करेगी, जब तक कि इसे वापस नहीं ले लिया जाता। राज ने कहा था- सरकार को मालूम हो, महाराष्ट्र क्या चाहता है उधर, राज ठाकरे ने 26 जून को कहा कि हमारी पार्टी एक रैली निकालेगी। सरकार को पता होना चाहिए कि महाराष्ट्र क्या चाहता है। महाराष्ट्र को अपनी पूरी ताकत दिखानी चाहिए। मैं अन्य राजनीतिक दलों से भी बात करूंगा। जब राज से पूछा गया कि क्या वे शिवसेना (यूबीटी) के नेताओं को भी आमंत्रित करेंगे तो ठाकरे ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों से संपर्क किया जाएगा। महाराष्ट्र किसी भी लड़ाई से बड़ा है। अगले दिन यानी 27 जून को दोनों पार्टियों में संयुक्त रैली करने पर सहमति बन गई। अब जानिए, राज और उद्धव ठाकरे के बीच फूट कैसे पड़ी… 1989 से राजनीति में सक्रिय हैं राज ठाकरे: 1989 में राज ठाकरे 21 साल की उम्र में शिवसेना की स्टूडेंट विंग, भारतीय विद्यार्थी परिषद के अध्यक्ष थे। राज इतने सक्रिय थे कि 1989 से लेकर 1995 तक 6 साल के भीतर उन्होंने महाराष्ट्र के कोने-कोने के अनगिनत दौरे कर डाले। 1993 तक उन्होंने लाखों की तादाद में युवा अपने और शिवसेना के साथ जोड़ लिए। इसका नतीजा ये हुआ कि पूरे राज्य में शिवसेना का तगड़ा जमीनी नेटवर्क खड़ा हो गया। 2005 में शिवसेना पर उद्धव हावी होने लगे: 2002 तक राज ठाकरे और उद्धव शिवसेना को संभाल रहे थे। 2003 में महाबलेश्वर में पार्टी का अधिवेशन हुआ। बालासाहेब ठाकरे ने राज से कहा- ‘उद्धव को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाओ। राज ने पूछा, ‘मेरा और मेरे लोगों का क्या होगा।’ 2005 तक उद्धव पार्टी पर हावी होने लगे थे। पार्टी के हर फैसले में उनका असर दिखने लगा था। ये बात राज ठाकरे को अच्छी नहीं लगी। राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ी, MNS का ऐलान किया
27 नवंबर 2005 को राज ठाकरे के घर के बाहर हजारों समर्थकों की भीड़ इकट्ठा हुई। यहां राज ने समर्थकों से कहा, ‘मेरा झगड़ा मेरे विट्ठल (भगवान विठोबा) के साथ नहीं है, बल्कि उसके आसपास के पुजारियों के साथ है। कुछ लोग हैं, जो राजनीति की ABC को नहीं समझते हैं। इसलिए मैं शिवसेना के नेता के पद से इस्तीफा दे रहा हूं। बालासाहेब ठाकरे मेरे भगवान थे, हैं और रहेंगे।’ 9 मार्च 2006 को शिवाजी पार्क में राज ठाकरे ने अपनी पार्टी ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना’ यानी मनसे का ऐलान कर दिया। राज ने मनसे को ‘मराठी मानुस की पार्टी’ बताया और कहा- यही पार्टी महाराष्ट्र पर राज करेगी। ———————————————- हिंदी से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें… शाह बोले- किसी विदेशी भाषा का विरोध नहीं: हिंदी सभी भारतीय भाषाओं की सखी गृह मंत्री अमित शाह ने 26 जून को नई दिल्ली में राजभाषा विभाग के कार्यक्रम में कहा- हिंदी सभी भारतीय भाषाओं की सखी है। हिंदी और सभी भारतीय भाषाएं मिलकर हमारे आत्मगौरव के अभियान को उसकी मंजिल तक पहुंचा सकती हैं। पूरी खबर पढ़ें… 

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