ट्रेड यूनियन्स का दावा-25 करोड़ कर्मचारी आज हड़ताल पर:बैंक और डाकघर में काम पर असर, कोलकाता-भुवनेश्वर में रेलवे ट्रैक जाम किया 

बैंक, बीमा, डाक और पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसी सर्विसेज आज यानी 9 जुलाई को देश में कई जगहों पर प्रभावित है। 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके सहयोगी संगठनों ने हड़ताल बुलाई है। यूनियन का दावा है कि देशभर में 25 करोड़ कर्मचारी हड़ताल पर हैं। ट्रेड यूनियंस निजीकरण और 4 नए लेबर कोड्स के विरोध में हैं। ये केंद्र की उन नीतियों का विरोध कर रही हैं, जिन्हें वे मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक मानती हैं। पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के मुताबिक देश में पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर में 56 करोड़ कर्मचारी हैं। इसमें इनफॉर्मल सेक्टर में 50 करोड़ और फॉर्मल सेक्टर में 6 करोड़ कर्मचारी हैं। भारत बंद की 5 तस्वीरें… 5 सवाल-जवाब के जरिए इस पूरे मामले को समझें… सवाल 1: इस हड़ताल में कौन-कौन शामिल हुआ? जवाब:ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की अमरजीत कौर ने हड़ताल से पहले कहा था कि 25 करोड़ से ज्यादा वर्कर इसमें शामिल होने वाले हैं। किसान-मजदूर भी प्रदर्शन का समर्थन करेंगे। इसमें बैंक, डाक, कोयला खनन, बीमा, परिवहन, फैक्ट्रियां और निर्माण जैसे कई सेक्टरों के कर्मचारी शामिल हैं। इसके अलावा, किसान और ग्रामीण मजदूर भी इस विरोध में शामिल हुए। सवाल 2: ट्रेड यूनियनों ने ये हड़ताल क्यों बुलाई? जवाब: ट्रेड यूनियनों का कहना है कि सरकार की नीतियां मजदूरों और किसानों के खिलाफ हैं। उनका आरोप है कि सरकार कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के लिए पब्लिक सेक्टर की कंपनियों का निजीकरण कर रही है, मजदूरों के हक छीन रही है और चार नए लेबर कोड्स के जरिए मजदूरों के हड़ताल करने और सामूहिक सौदेबाजी जैसे अधिकारों को कमजोर कर रही है। सवाल 3: इस हड़ताल को और किसने समर्थन दिया? जवाब: इस हड़ताल को संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) और कृषि मजदूरों के संगठनों का भी समर्थन मिला। इसके अलावा कुछ विपक्षी पार्टियों ने भी इस हड़ताल का समर्थन किया। सवाल 4: पहले भी ऐसी हड़ताल हुई हैं क्या? जवाब: हां, ट्रेड यूनियनों ने पहले भी ऐसी देशव्यापी हड़तालें की हैं। नवंबर 2020, मार्च 2022 और फरवरी 2024 में भी इसी तरह की हड़तालें हुई थीं, जिनमें लाखों कर्मचारियों और किसानों ने हिस्सा लिया था। सवाल 5: सरकार का इस हड़ताल पर क्या रुख है? जवाब: अभी तक सरकार की ओर से इस हड़ताल पर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। लेकिन पहले की हड़तालों को देखें तो सरकार अक्सर इन्हें “सीमित प्रभाव” वाली बताती रही है। इस बार भी सरकार और यूनियनों के बीच तनाव बढ़ सकता है, क्योंकि यूनियनें सरकार की नीतियों को बदलने की मांग कर रही हैं। 

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