दलाई लामा का 90वां जन्मदिन, पीएम मोदी ने दी शुभकामनाएं:प्रेम, करुणा और नैतिक अनुशासन का प्रतीक बताया; धर्मशाला में हुई प्रार्थना सभा 

हिमाचल के धर्मशाला में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का 90वां जन्मदिन मनाया गया है। पीएम मोदी ने उन्हें शुभकामनाएं देते हुए अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना की। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा- 1.4 अरब भारतीयों की ओर से मैं परम पूज्य दलाई लामा को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। वे प्रेम, करुणा, धैर्य और नैतिक अनुशासन का प्रतीक हैं। वहीं धर्मशाला समेत देश के विभिन्न हिस्सों में दलाई लामा के सम्मान में प्रार्थना सभाएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। धर्मशाला स्थित त्सुगलाखंग मंदिर परिसर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु, तिब्बती समुदाय के लोग, बौद्ध भिक्षु और अंतरराष्ट्रीय अनुयायी एकत्र हुए। समारोह में तिब्बती संगीत, नृत्य और पारंपरिक पूजा-अर्चना का आयोजन हुआ। बचपन में ही पहचान ली गई थी दलाई लामा की महानता दलाई लामा का असली नाम ल्हामो धोन्डुप था, जिन्हें बाद में तेन्जिन ग्यात्सो नाम से जाना गया। उनका जन्म 6 जुलाई 1935 को तिब्बत के ताक्सर गांव (अमदो क्षेत्र) में हुआ था। केवल दो वर्ष की आयु में ही उन्हें 13वें दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया। 1939 में उन्हें तिब्बत की राजधानी ल्हासा लाया गया और 22 फरवरी 1940 को पारंपरिक धार्मिक और राजनीतिक अनुष्ठानों के साथ उन्हें तिब्बत का सर्वोच्च नेता घोषित किया गया। मात्र 6 साल की उम्र में उन्होंने बौद्ध दर्शन, तंत्र, संस्कृत, तर्क और अन्य शास्त्रों की पढ़ाई शुरू कर दी थी। 1959 में भारत आए, यहीं से दे रहे हैं शांति का संदेश 1950 में जब चीन ने तिब्बत पर हमला किया, तब महज 15 वर्ष की आयु में दलाई लामा को राजनीतिक जिम्मेदारी उठानी पड़ी। इसके बाद मार्च 1959 में तिब्बत में राष्ट्रीय विद्रोह को जब बेरहमी से दबा दिया गया, तो दलाई लामा को 80 हजार से अधिक तिब्बती शरणार्थियों के साथ भारत आना पड़ा। भारत सरकार ने उन्हें धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में शरण दी, जहां से उन्होंने तिब्बती निर्वासित सरकार की स्थापना की। तब से लेकर आज तक दलाई लामा भारत को अपना आध्यात्मिक और सांस्कृतिक घर मानते हुए यहीं निवास कर रहे हैं और शांति, करुणा, सहिष्णुता और सार्वभौमिक मानवता का संदेश पूरी दुनिया में फैला रहे हैं। 1989 में मिला था नोबेल शांति पुरस्कार दलाई लामा को दुनियाभर में शांति, अहिंसा और धार्मिक सहिष्णुता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। साल1989 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने दुनिया के कई देशों में यात्राएं कर लोगों को करुणा, संवाद और आंतरिक शांति के महत्व को समझाया है। वर्तमान में वह वैश्विक मंचों पर प्राचीन भारतीय ज्ञान— विशेषकर बुद्ध धर्म, योग, ध्यान और मन की प्रकृति की शिक्षा देकर मनोविज्ञान और भावनात्मक संतुलन को लेकर नई दिशा दे रहे हैं। भारत से उनका विशेष संबंध दलाई लामा ने कई बार कहा है कि वह भारत को न केवल अपनी शरणस्थली, बल्कि “गुरु का देश” मानते हैं। उनका कहना है कि “मेरे शरीर का पोषण भारत के भोजन से हुआ है और मेरा मन प्राचीन भारतीय ज्ञान से प्रेरित है।” उन्होंने यह भी कहा कि वह मानव मूल्यों, धार्मिक सौहार्द और आंतरिक शांति को जीवन का उद्देश्य मानते हुए कार्य करते रहेंगे। 130 साल तक जीने की इच्छा जताई बीते कल जन्मदिन से एक दिन पहले दलाई लामा ने कहा था कि वे 130 साल या उससे अधिक जीवित रहना चाहते हैं। उनका उद्देश्य बुद्ध धर्म और तिब्बती समाज की सेवा करना है। उन्होंने बताया कि बचपन से ही उन्हें करुणा के बोधिसत्व अवलोकितेश्वर से गहरा आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस होता है। दलाई लामा ने कहा कि वे हर सुबह अवलोकितेश्वर के बारे में सोचकर दिन की शुरुआत करते हैं। उनकी वर्तमान शक्ति और धैर्य अवलोकितेश्वर के आशीर्वाद का परिणाम है। 

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