स्कूलों के मर्जर पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित:याचिकाकर्ता ने कहा- RTE का उल्लंघन है; सरकार बोली- बिल्डिंग दूसरे काम में आएगी 

​लखनऊ हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 5000 से ज्यादा प्राइमरी और जूनियर स्कूलों के मर्जर के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने सीतापुर की कृष्णा कुमारी समेत 51 स्कूली बच्चों की याचिकाओं पर शुक्रवार को सुनवाई पूरी की। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य सरकार का यह फैसला शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। दूसरी तरफ, राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि यह कदम स्कूलों के बेहतर प्रबंधन के लिए उठाया गया है। कोर्ट से जल्द ही इस मामले में फैसला आने की उम्मीद है। इस मामले का निर्णय राज्य के कई प्राथमिक स्कूलों और उनसे जुड़े छात्रों के भविष्य को प्रभावित करेगा। यथावत स्थिति बनाए रखने के आदेश एडवोकेट उत्सव मिश्रा ने बताया- सुनवाई पूरी होने के बाद जस्टिस पंकज भाटिया ने मौखिक रूप से पूरे मामले में आगे कोई प्रक्रिया न किए जाने का आदेश दिया है। उन्होंने कहा जब तक ऑर्डर नहीं आ जाता है तब तक इस प्रक्रिया में आगे कोई कार्रवाई न की जाए यथावत स्थिति बनाए रखा जाए। इससे पहले सरकार की तरफ से जवाब दाखिल करने को लेकर एक दिन का समय मांगा गया था। जिस पर शुक्रवार को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई थी। हाईकोर्ट के रुख पर पेरेंट्स बोले… फैसला बच्चों के पक्ष में आएगा स्कूलों के मर्जर पर पेरेंट्स हिमांशु राणा बोले- स्कूलों का मर्जर हो जाएगा तो बच्चे दूर कैसे पढ़ने जाएंगे। इस बात पर हाईकोर्ट सहमत है। न्यायमूर्ति ने राज्य सरकार से जवाब भी मांगा था। हमें पूरी उम्मीद है फैसला बच्चों के पक्ष में आएगा। बच्चों की जीत होगी पेरेंट्स गणेश शंकर दीक्षित- राज्य सरकार के अधिकारी मामले में समय चाहते थे, जिससे वह मर्जर की प्रक्रिया पूरी कर सकें। न्यायमूर्ति ने यह बात समझी और उन्होंने मामले में स्टे देने का विकल्प चुना, लेकिन अधिकारी तैयार नहीं हुए। मामले में फैसला सुरक्षित कर लिया गया है। बच्चों की जीत होगी। RTE कानून का उल्ल्घंन पेरेंट्स गणेश शंकर गुप्ता ने कहा- सरकार के 5000 स्कूलों के मर्जर के विरोध में बच्चों ने दलील दी कि अगर स्कूल घर से दूर चले जाएंगे तो पढ़ाई प्रभावित होगी। न्यायमूर्ति भी इस तर्क से सहमत दिखे। इसके साथ ही नया आदेश शिक्षा के अधिकार कानून का भी उल्ल्घंन है। पहले दिन सुनवाई में क्या-क्या हुआ पढ़िए याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने अपनी लगभग सभी दलीलें पूरी कर लीं। उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि सरकार का फैसला राइट टू एजुकेशन एक्ट (RTE) का उल्लंघन है और इससे हजारों बच्चों और शिक्षकों का भविष्य खतरे में आ सकता है। मेहरोत्रा ने कहा कि स्कूलों का आपस में विलय करने से कई छात्रों को अपने गांव से 2-3 किलोमीटर दूर तक पढ़ने जाना पड़ेगा। गांवों में साधनों की कमी और परिवहन की दुश्वारियां बच्चों की पढ़ाई में बड़ी बाधा बन सकती हैं। राज्य सरकार का पक्ष- कोई स्कूल बंद नहीं होगा गुरुवार को लंच ब्रेक के बाद राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता (AAG) अनुज कुदेशिया ने बहस शुरू की। उन्होंने कहा- “राज्य सरकार की मंशा स्कूलों को बंद करने की नहीं है। ऐसे 58 स्कूल हैं जहां एक भी छात्र नामांकित नहीं है। ऐसे स्कूलों को बंद नहीं किया जा रहा, बल्कि उनका उपयोग अन्य सरकारी कार्यों में किया जाएगा।” इस मुद्दे पर दो याचिकाएं दायर की गई हैं। एक याचिका में सीनियर एडवोकेट डॉ. लालता प्रसाद मिश्रा पहले ही अपनी बहस पूरी कर चुके हैं। इसके बाद एडवोकेट गौरव मेहरोत्रा की याचिका पर बहस अंतिम चरण में है। न्यायालय ने समय को लेकर दी सख्ती की चेतावनी गुरुवार को समय की कमी के चलते सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शुक्रवार को राज्य सरकार को हर हाल में अपना पक्ष पूरा करना होगा। अदालत ने कहा कि अब अतिरिक्त समय नहीं दिया जाएगा। संभावना है कि शुक्रवार को ही मामले की सुनवाई पूरी हो जाएगी। अब जानते हैं पूरा मामला क्या है? बेसिक शिक्षा के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार ने आदेश जारी किया कि 50 से कम स्टूडेंट वाले परिषदीय स्कूलों (कक्षा-8 तक) का विलय करने की प्रक्रिया शुरू की जाए। इसके बाद स्कूल शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा ने सभी बीएसए से 50 से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों का ब्योरा मांगा। साथ ही उसके पड़ोस के स्कूल की जानकारी भी मांगी। उन्होंने साफ किया है कि कम छात्र संख्या वाले स्कूल को पड़ोस के किसी स्कूल में विलय किया जाएगा। यह भी देखें कि ऐसे स्कूल के रास्ते में कोई नदी, नाला, हाईवे, रेलवे ट्रैक नहीं होना चाहिए। ऐसा इसलिए, ताकि किसी दुर्घटना की आशंका नहीं रहे। इस मामले को लेकर प्रदेशभर में प्रदर्शन शुरू हो गया है। मामले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई है। सरकार का क्या तर्क? सरकार का कहना है कि सभी स्टूडेंट को बेहतर और सुविधापूर्वक शिक्षा देने के लिए ये कदम उठाया जा रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा (एनसीएफ) -2020 के तहत स्कूलों के बीच सहयोग, समन्वय और संसाधनों के साझा उपयोग को बढ़ावा देना जरूरी है। जिससे हर स्टूडेंट को सुविधा के साथ बेहतर शिक्षा मिल सके। सरकार की तैयारी क्या है? हर जिले में एक मुख्यमंत्री अभ्युदय कंपोजिट विद्यालय (कक्षा 1 से 8 तक) खोला जा रहा है। प्रदेश सरकार की ओर से इन स्कूलों को आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और शैक्षणिक सुविधाओं से लैस किया जाएगा। हर स्कूल में कम से कम 450 स्टूडेंट के लिए संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं। स्कूल बिल्डिंग को 1.42 करोड़ की लागत से अपग्रेड भी किया जा रहा। स्कूलों में स्मार्ट क्लास, टॉयलेट, फर्नीचर, पुस्तकालय, कंप्यूटर रूम, मिडडे मील किचन, डायनिंग हॉल, सीसीटीवी, वाई-फाई, ओपन जिम और शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की जाएगी। इसी तरह सरकार की ओर से हर जिले में एक मुख्यमंत्री मॉडल कंपोजिट स्कूल (कक्षा 1 से 12 तक) की स्थापना की जा रही है। इस पर करीब 30 करोड़ रुपए की लागत आएगी। इन स्कूलों में कम से कम 1500 छात्रों के लिए स्मार्ट क्लास, एडवांस साइंस लैब, डिजिटल लाइब्रेरी, खेल मैदान, कौशल विकास सुविधाओं की स्थापना की जाएगी। कक्षा 11-12 के लिए विज्ञान, वाणिज्य और कला संकाय की अलग-अलग कक्षाओं का भी प्रावधान किया जाएगा। इन आंकड़ों पर भी नजर डालिए… 28 हजार प्राइमरी स्कूल पहले कम हुए साल 2017-18 में बेसिक शिक्षा परिषद के 1.58 लाख से अधिक स्कूल थे। इनमें 1 लाख 13 हजार 289 प्राइमरी स्कूल थे। कंपोजिट विद्यालयों के गठन के लिए कम छात्र संख्या वाले करीब 28 हजार स्कूलों को पड़ोस के स्कूल में मर्ज किया गया। इससे 28 हजार प्रधानाध्यापक के पद सीधे-सीधे कम हो गए। वहीं, छात्र-शिक्षक अनुपात के लिहाज से हजारों टीचर भी सरप्लस हो गए। 70 फीसदी हेड मास्टर स्थायी नहीं उत्तर प्रदेश शैक्षिक महासंघ के संगठन मंत्री महेंद्र कुमार ने बताया कि परिषदीय स्कूलों में करीब एक दशक से प्रधानाध्यापक के पद पर पदोन्नति नहीं हुई है। 70 फीसदी से ज्यादा स्कूलों में कार्यवाहक हेडमास्टर हैं। कार्यवाहक हेडमास्टरों को कोई अतिरिक्त भत्ता नहीं दिया जाता। 42 लाख छात्र भी कम हो गए बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में 2017-18 में करीब 1.37 करोड़ स्टूडेंट थे। योगी सरकार की ओर से हर साल ‘स्कूल चलो अभियान’ चलाकर नामांकन संख्या बढ़ाई गई। कोरोना महामारी के दौरान जब ग्रामीणों के पास प्राइवेट स्कूलों में फीस जमा करने के लिए पैसे नहीं थे, तो उन्होंने भी अपने बच्चों का सरकारी स्कूलों में दाखिला कराया। 2021-22 में स्टूडेंट की संख्या 1.91 करोड़ तक पहुंच गई। लेकिन, बीते 3 साल में लगातार ये संख्या घटती चली गई। आलम यह है कि अब ये संख्या 1.49 करोड़ रह गई है। जानकार मानते हैं कि करीब 28 हजार प्राथमिक स्कूलों को कंपोजिट स्कूल में तब्दील करने से भी छात्रों की संख्या कम हुई है। महकमे के अधिकारी कहते हैं कि शिक्षकों की ओर से नामांकन बढ़ाने और शिक्षा की गुणवत्ता सुधार में दिलचस्पी नहीं ली जाती है। इस वजह से बच्चे स्कूल छोड़कर चले जाते हैं। जबकि सरकार हर संभव सहायता और सभी सुविधाएं दे रही है। अब जानिए शिक्षक संघ ‌विरोध क्यों कर रहे? उत्तर प्रदेश महिला शिक्षक संघ की अध्यक्ष सुलोचना मौर्य का कहना है कि स्कूलों की संख्या कम करने से बच्चों का नुकसान होगा। अभी एक किलोमीटर की दूरी पर ही बच्चे स्कूल नहीं आते। जब एक ग्रामसभा का स्कूल बंद कर दूसरी ग्राम सभा के स्कूल में बच्चों को मर्ज किया जाएगा, तो स्कूल की दूरी और बढ़ जाएगी। गांव में गरीब माता-पिता बच्चों के लिए वैन नहीं लगा सकते। वह सुरक्षा की दृष्टि से भी बच्चों को दूर स्कूल नहीं भेजेंगे। इससे सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों और अभिभावक का होगा। बच्चे पढ़ाई छोड़ देंगे या प्राइवेट स्कूल में एडमिशन लेने को मजबूर होंगे। शिक्षा का अधिकार का उल्लंघन कर रही है सरकार उत्तर प्रदेश प्राइमरी शिक्षक संघ के अध्यक्ष योगेश त्यागी का कहना है कि सरकार शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 और बाल संरक्षण अधिनियम का खुला उल्लंघन कर रही है। 

Related Posts