तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने 90वें जन्मदिन से पहले कहा- मैं अभी 130 साल और जियूंगा। शनिवार को अपने उत्तराधिकारी के चुनाव और विवाद पर कहा- कहा कि मुझे लोगों की सेवा करने के लिए 30-40 साल और जीने की उम्मीद है। कई भविष्यवाणियों को देखते हुए मुझे लगता है कि मुझ पर अवलोकितेश्वर का आशीर्वाद है। मुझे उम्मीद है कि मैं अभी भी 30-40 साल और जियूंगा। दलाई लामा के उत्तराधिकारी की घोषणा की अफवाहें उनके 90वें जन्मदिन से कुछ दिन पहले से ही चल रही हैं। हालांकि, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष पेनपा त्सेरिंग अफवाहों को खारिज कर चुके हैं। मौजूदा दलाई लामा 6 जुलाई को 90 साल के हो जाएंगे। निर्वासित तिब्बती सरकार उनके जन्मदिन पर हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के पास मैकलोडगंज में एक सप्ताह से कार्यक्रम कर रही है। भारत बोला- हम धार्मिक प्रथाओं पर नहीं बोलते
भारतीय विदेश मंत्रालय ने 4 जुलाई को दलाई लामा के उत्तराधिकार पर कहा- भारत सरकार आस्था और धार्मिक प्रथाओं से जुड़े मामलों पर न तो कोई रुख अपनाती है और न बोलती है। आगे भी ऐसा करती रहेगी। दरअसल, दलाई लामा ने 2 जुलाई को हिमाचल में कहा था कि उनके उत्तराधिकारी को मान्यता देने का अधिकार तिब्बती बौद्ध गुरुओं को है। चीन का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा था कि किसी और को इस मामले में दखल देने का अधिकार नहीं है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने 3 जुलाई को दलाई लामा के बयान का समर्थन किया था। इस पर चीन ने नाराजगी जताई थी। चीन ने कहा था- तिब्बत से जुड़े मुद्दों पर भारत को सावधानी बरतनी चाहिए। दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चीनी सरकार की मंजूरी लेनी होगी। चीनी कानूनों के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक परंपराओं का भी पालन करना होगा। 3 दिन चला 15वां तिब्बती धार्मिक सम्मेलन
हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में 3 दिवसीय 15वां तिब्बती धार्मिक सम्मेलन 2 जुलाई को शुरू हुआ था। यहां दलाई लामा ने कहा था- दलाई लामा की प्रथा भविष्य में जारी रहेगी। उनके देहांत के बाद उत्तराधिकारी का चयन तिब्बती बौद्ध परंपराओं के अनुसार होगा। तिब्बत और बौद्ध धर्म में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए दलाई लामा ने यह भी स्पष्ट रूप से कहा था कि उनके उत्तराधिकारी के चयन में चीन की कोई भूमिका नहीं होगी। अगर चीन ऐसा करने की कोशिश भी करता है तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस पर चीन ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। धर्मशाला स्थित दलाई लामा लाइब्रेरी एंड आर्काइव में 3 दिवसीय धार्मिक सम्मेलन शुरू हुआ था, जिसमें तिब्बती बौद्ध धर्म की विभिन्न परंपराओं के प्रमुख लामाओं, तिब्बती संसद, सिविल सोसाइटी, संगठनों और दुनिया भर से आए तिब्बती समुदाय के प्रतिनिधि ने भाग लिया था। गादेन फोडंग ट्रस्ट को सौंपी जिम्मेदारी
14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो ने वीडियो संदेश के माध्यम से बताया था उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के चयन की जिम्मेदारी ‘गादेन फोडंग ट्रस्ट’ को सौंपी है। दलाई लामा ने स्थापना 2015 में दलाई लामा की संस्था से संबंधित मामलों की देखरेख के लिए इस ट्रस्ट की स्थापना की थी। तेनजिन ग्यात्सो ने कहा था कि अगले दलाई लामा की पहचान और मान्यता की पूरी प्रक्रिया का अधिकार केवल ट्रस्ट को है। कोई अन्य व्यक्ति, संगठन या सरकार इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। चीन भी नहीं कर सकता नियुक्ति
दलाई लामा ने कहा था कि ट्रस्ट के अलावा कोई और अगले दलाई लामा की नियुक्ति नहीं कर सकता है। इस घोषणा ने उन चर्चाओं पर विराम लगा दिया, जिनमें कहा जा रहा था कि चीन मौजूदा दलाई लामा की मौत के बाद खुद 15वें दलाई लामा की नियुक्ति कर देगा। दलाई लामा ने अपने वीडियो संदेश में कहा था कि 1969 में ही हमने यह स्पष्ट कर दिया था कि संस्था को जारी रखने का निर्णय संबंधित लोगों को करना चाहिए। पिछले 14 सालों में हमें दुनिया भर से, विशेषकर तिब्बत से, संस्था को जारी रखने के आग्रह मिले हैं। उन्होंने 24 सितंबर 2011 को भी कहा था कि जब वे 90 साल के हो जाएंगे, तब इस विषय पर फैसला लेंगे। CTA नेता बोले- चीन इस परंपरा का फायदा उठाना चाह रहा है
कार्यक्रम के दौरान सेंट्रल तिब्बतियन एडमिनिस्ट्रेशन (CTA) के नेता पेन्पा शेरिंग ने धर्मशाला में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में चीन पर आरोप लगाया कि वह दलाई लामा के उत्तराधिकार को राजनीतिक हथियार बना रहा है। उन्होंने कहा था- चीन इस परंपरा को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है, जो पूरी तरह निंदनीय है। यह आध्यात्मिक प्रक्रिया है और हम इसमें किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेंगे। पेन्पा शेरिंग ने यह भी कहा कि वर्तमान में चीन सरकार की नीतियां तिब्बती पहचान, भाषा और धर्म को मिटाने की कोशिश कर रही हैं। शी जिनपिंग की सरकार तिब्बती लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ों को निशाना बना रही है। दलाई लामा किताब में भी ये बातें कह चुके
मौजूदा दलाई लामा 6 जुलाई को 90 साल के हो जाएंगे। इसके बाद उनके उत्तराधिकारी पर निर्णय संभव है। इस साल मार्च में प्रकाशित हुई दलाई लामा की किताब वॉयस फॉर द डायसलेस में भी उन्होंने लिखा है कि उनका पुनर्जन्म चीन के बाहर एक स्वतंत्र दुनिया में होगा, जहां तिब्बती बौद्ध धर्म की स्वतंत्रता बनी रहे। उन्होंने लिखा है कि उनके पुनर्जन्म का उद्देश्य उनके कार्य को आगे बढ़ाना है। इसलिए, नया दलाई लामा एक स्वतंत्र दुनिया में जन्म लेगा, ताकि वह तिब्बती बौद्ध धर्म का नेतृत्व और तिब्बती लोगों की आकांक्षाओं का प्रतीक बन सके। चीन ने दलाई लामा का बयान खारिज किया
किताब में कही बात पर चीन की ओर से भी प्रतिक्रिया आई थी। चीनी के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने दलाई लामा के किताब में लिखे बयान को खारिज किया। साथ ही कहा कि दलाई लामा को तिब्बती लोगों का प्रतिनिधित्व करने का कोई अधिकार नहीं है। प्रवक्ता ने कहा कि बुद्ध की वंशावली चीन के तिब्बत में विकसित हुई। इस हिसाब से उनके उत्तराधिकारी का चयन भी चीनी कानून और परंपराओं के अनुसार ही होगा। उन्होंने दावा किया कि साल 1793 में किंग राजवंश ने गोल्डन अर्न प्रक्रिया शुरू की थी। उसके तहत चीन को ही दलाई लामा के उत्तराधिकारी को मंजूरी देने का अधिकार है। दलाई लामा बोले- यह प्रक्रिया उपयोग में नहीं
हालांकि, तिब्बती समुदाय और दलाई लामा ने चीन के इस दावे को खारिज किया। उन्होंने कहा कि गोल्डन अर्न प्रक्रिया केवल 11वें और 12वें दलाई लामा के लिए उपयोग की गई थी। 9वें, 13वें, और 14वें दलाई लामा के चयन में इसका उपयोग नहीं किया गया। 1940 में 14वें दलाई लामा बने थे ल्हामो थोंडुप
दलाई लामा एक मंगोलियाई पद है, जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर। तिब्बत में अब तक 14 दलाई लामा रह चुके हैं। ल्हामो थोंडुप को 22 फरवरी 1940 को 14वां दलाई लामा घोषित किया गया था। तब उनकी उम्र महज 5 साल थी। उन्हें तेनजिन ग्यात्सो भी कहा जाता है। 1937 में जब तिब्बत के धर्मगुरुओं ने दलाई लामा को देखा तो पाया कि वो 13वें दलाई लामा थुबतेन ग्यात्सो के अवतार थे। सभी टेस्ट पार करने के बाद धर्मगुरुओं ने दलाई लामा को धार्मिक शिक्षा दी। कैसे शुरू हुई दलाई लामा चुनने की प्रक्रिया
1357 से 1419 तक तिब्बत में एक धर्मगुरु हुए, जिनका नाम जे सिखांपा था। इन्होंने 1409 में तिब्बत में एक स्कूल शुरू किया था। नाम रखा जेलग स्कूल। इसी स्कूल में एक होनहार छात्र थे गेंदुन द्रुप। आगे चलकर गेंदुन ही पहले दलाई लामा बने। 1630 के दशक में बौद्धों और तिब्बतियों के बीच नेतृत्व को लेकर लड़ाइयां शुरू हो गई थीं। आखिरकार 5वें दलाई लामा तिब्बत को एक करने में कामयाब रहे। 13वें दलाई लामा ने 1912 में तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया। उस समय तो चीन ने कोई आपत्ति नहीं जताई, लेकिन करीब 40 साल बाद जब चीन में कम्युनिस्ट सरकार बनी, तब चीन के लोगों ने तिब्बत पर हमला कर दिया। उस हमले में तिब्बतियों को कोई कामयाबी नहीं मिली। कैसे मिलते हैं अगले दलाई लामा
द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, दलाई लामा को चुना नहीं बल्कि ढूंढा जाता है। दरअसल, तिब्बती ऐसा मानते हैं कि दलाई लामा के पास खुद इस बात का चुनाव करने की पावर होती है कि वो किस शरीर में अगला जन्म लेंगे। दलाई लामा की मौत के बाद अगले लीडर ढूंढने की जिम्मेदारी दूसरे लामा और तिब्बत की सरकार की होती है। दलाई लामा के अंतिम संस्कार के बाद बाकी लामा ये देखते हैं कि वहां से धुआं किस दिशा की तरफ बढ़ रहा है। उसी दिशा में अगले दलाई लामा की खोज शुरू की जाती है। कई बार लामाओं को इससे जुड़े सपने भी आते हैं। सभी लामा तिब्बत की पवित्र झील ल्हामो ला-त्सो के पास तप भी करते हैं, जिससे उन्हें अगले दलाई लामा से जुड़े संकेत मिल सकें। दरअसल, तिब्बतियों में ऐसी मान्यता है कि इस झील की देवी ने पहले दलाई लामा से वादा किया था कि वो दलाई लामा के रीइन्कार्नेशन लाइन यानी पुनर्जन्म के जरिए आगे बढ़ने वाले वंश की रक्षा करेंगी। इसके अलावा ये भी देखा जाता है कि दलाई लामा की मौत के वक्त बुद्धिस्ट कम्युनिटी में कौन-कौन से बच्चे पैदा हुए थे। एक बार जब बच्चे का चयन हो जाता है तब उसके कई टेस्ट लिए जाते हैं। इनमें से सबसे मुख्य टेस्ट होता है पिछले दलाई लामा से जुड़ाव का। चुने गए बच्चे के सामने पिछले दलाई लामा की कुछ चीजें रखी जाती हैं, जैसे छड़ी, घंटी, माला और डमरू। इसके बाद उससे मिलती-जुलती दूसरी चीजें भी वहां रखी जाती हैं। बच्चे को उनमें से दलाई लामा के सामान को पहचानना होता है। अगर लामाओं ने एक ही बच्चे का चयन किया होता है तो दूसरे सीनियर स्पिरिचुअल लीडर्स के साथ चर्चा के बाद दलाई लामा की घोषणा कर दी जाती है। अगर लामाओं को एक से ज्यादा बच्चों में दलाई लामा की झलक दिखती है तो फिर एक गोल्डन अर्न यानी कलश में नाम की पर्ची रखकर जनता से चुनने के लिए कहा जाता है। दलाई लामा की घोषणा के बाद चुने गए बच्चे को ल्हासा ले जाया जाता है, जहां उसे आध्यात्मिक गुरु बनाने के लिए बौद्ध धर्म के साथ-साथ कई दूसरे विषयों की शिक्षा दी जाती है। 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो के मिलने में 4 साल का समय लगा था। 1949 में चीन ने तिब्बत पर किया हमला 1949 में चीन के लोगों ने तिब्बत पर आक्रमण किया। चीन का यह आक्रमण तब हुआ जब वहां 14वें दलाई लामा को चुनने की प्रक्रिया चल रही थी। तिब्बत को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा था। जब तिब्बत पर हमला हुआ था, तब चीन में माओ त्से तुंग के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार थी। माओ त्से तुंग ही थे, जिनके सत्ता में आने के बाद चीन विस्तारवाद पर उतर आया। पहली बार 1956 में चीन के लीडर के साथ भारत आए थे दलाई लामा दलाई लामा की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, जब 1956 में चीन के उस समय के प्रधानमंत्री झाऊ एन-लाई भारत दौरे पर आए थे, तब उनके साथ दलाई लामा भी मौजूद थे। दोनों नेताओं ने तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात की थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उस समय दलाई लामा ने नेहरू के सामने तिब्बत की आजादी की बात छेड़ दी थी। हालांकि, नेहरू ने उन्हें समझाया था कि वो तिब्बत की आजादी की बात छोड़कर उसकी ऑटोनॉमी यानी स्वायत्ता की चाह रखें। बीजिंग ने अकेले मिलने बुलाया, जान का खतरा देख भारत भागे थे दलाई लामा एपिक चैनल की एक डॉक्यूमेंट्री दलाई लामा- द ग्रेट एस्केप के मुताबिक, भारत दौरे के कुछ साल बाद चीन की सरकार ने दलाई लामा को बीजिंग बुलाया। साथ ही शर्त भी रखी कि वो अकेले ही आएं। यानी उनके साथ न कोई सैनिक आए, न कोई बॉडीगार्ड और न ही कोई उनका समर्थक। उस समय दलाई लामा के एक ऑस्ट्रेलियाई दोस्त भी थे। नाम था हेंरिच्क हर्रेर। हेंरिच्क ने उन्हें सलाह दी कि अगर वो बीजिंग अकेले गए, तो उन्हें हमेशा के लिए पकड़ लिया जाएगा। जान का खतरा देखते हुए मार्च 1959 में दलाई लामा सैनिक के वेश में तिब्बत से भागकर भारत आ गए। उन्हें भारत आने में 14 दिन का वक्त लगा था। दलाई लामा अरुणाचल प्रदेश के तवांग को पार कर भारत आए थे। इसके बाद अप्रैल 1959 में भारत ने दलाई लामा को शरण दी। जिस वक्त उन्हें शरण दी गई, उस वक्त उनकी उम्र महज 23 साल थी। इसके बाद अगले एक साल में करीब 80 हजार तिब्बती दलाई लामा के पीछे-पीछे भारत पहुंचे थे। चीन ने अक्साई चिन पर बनाई सड़क, नाराज भारत ने दलाई लामा को शरण दी 1947 में भारत की आजादी और 1949 में चीन में कम्युनिस्ट सरकार के बनने के बाद चीन-भारत के बीच विवाद शुरू हो गए थे। 1957 में चीन के शिनहुआ अखबार में छपा था कि दुनिया का सबसे ऊंचा हाईवे शिन्जियांग से लेकर तिब्बत के बीच बनाया गया है। भारत को भी इसकी जानकारी अखबार से ही मिली। इस हाईवे की सड़क अक्साई चिन से भी गुजरी, जो भारत का हिस्सा था। इस पर उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने झाऊ एन-लाई को पत्र भी लिखा, लेकिन झाऊ ने सीमा विवाद का मुद्दा उठा दिया। इसी के बाद 1959 में भारत ने दलाई लामा को शरण दे दी। इससे चीन और बौखला गया। कैसे 1962 में जंग की एक वजह बने दलाई लामा 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ, तो उसकी कई वजहें भी सामने आई थीं। एक वजह ये भी थी कि चीन के सैनिक भारतीय इलाकों में घुस आए थे और इन सैनिकों को वापस लौटाने के लिए चीन ने एक शर्त रखी। ये शर्त थी नया व्यापारिक समझौता। भारत ने इस व्यापारिक समझौते पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया और कहा कि चीन जब तक 1954 की स्थिति पर नहीं आता, तब तक कोई समझौता नहीं होगा। उसके बाद 13 सितंबर 1962 को चीन ने फिर प्रस्ताव रखा कि अगर भारत हस्ताक्षर करने को तैयार होता है, तो उसकी सेना 20 किमी पीछे जाने को तैयार है। भारत इस पर तैयार भी हो गया, लेकिन चीन ने हमला कर दिया। 1962 की लड़ाई के बाद स्वीडन के एक पत्रकार बेर्टिल लिंटर की एक किताब आई थी। इस किताब का नाम था “चाइनीज वॉर विद इंडिया’। इस किताब में लिंटर ने बताया था कि जंग से ठीक पहले समय चीन की हालत बहुत खराब हो गई थी। वहां अकाल पड़ गया था। इसमें 3-4 करोड़ लोग मारे गए थे। इन सबसे ध्यान भटकाने के लिए माओ त्से तुंग को एक बाहरी दुश्मन की जरूरत थी। ऐसे में उनकी नजर सबसे पहले दलाई लामा पर पड़ी। वो हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रह रहे थे। दलाई लामा को शरण दिए जाने से चीन में आक्रोश था और चीन की सरकार तो पहले ही इससे बौखला गई थी। चीन भारत को सबक सिखाना चाहता था और इसलिए तमाम शांति की कोशिशों के बावजूद चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। —————————————————
मामले से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें… अरुणाचल प्रदेश के सीएम धर्मशाला पहुंचे, दलाई लामा के जन्मदिवस समारोह में शामिल होंगे अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू शुक्रवार को धर्मशाला पहुंचे। वे तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा के 90वें जन्मदिवस और दीर्घायु प्रार्थना कार्यक्रम में विशेष अतिथि हैं। धर्मशाला के होटल हयात में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की सुरक्षा मंत्री कालोन डोलमा ग्यारी ने उनका स्वागत किया। पूरी खबर पढ़ें…

90वें जन्मदिन से पहले दलाई लामा बोले- 130 साल जियूंगा:अगले दलाई लामा के चुनाव और विवाद के बीच कहा- अभी 30-40 साल तक लोगों की सेवा करूंगा
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