लखनऊ में अलम-ए-फातेह फुरात का जुलूस निकला:80 वर्षों से निकल रहा है जुलूस, ‘या सकीना-या अब्बास’ कि सदा के साथ किया मातम 

​लखनऊ शुक्रवार की रात या सकीना…या अब्बास की सदाओं से गूंज रहा था। 8 मोहर्रम को देर रात गोमती किनारे स्थित दरियावली मस्जिद से अलम-ए-फातेह फुरात (हजरत अब्बास ) का जुलूस निकाला गया। जुलूस चौक स्थित इमामबाड़ा गुफरामआब तक गया। अलम-ए-फातेह फुरात का जुलूस लश्करे हुसैनी के अलमदार (अलम लिए हुए) हजरत अब्बास की याद में निकाला गया। अलम छूने के लिए हजारों कि संख्या में लोग बेकरार नजर आए। 80 वर्षों से निकल रहा है जुलूस हजरत अब्बास और हजरत सकीना पैगंबर मोहम्मद साहब के वंशज में थे जो कर्बला की लड़ाई में हजरत इमाम हुसैन के 72 साथियों में शामिल थे। हजरत अब्बास कर्बला की इसी लड़ाई में शहीद हो गए थे। उन्हीं की याद हर साल ये जुलूस निकाला जाता है। जुलूस से पहले शिया धर्म गुरु मौलाना कल्बे जवाद ने मजलिस पढ़ी, जिसमें हजारों की संख्या में अजादार शामिल हुए। मौलाना कल्बे जवाद ने बताया कि विगत 80 सालों से दरिया वाली मस्जिद से हजरत अब्बास का जुलूस निकल रहा है, जो मौलाना कल्बे जव्वाद के पूर्वजों द्वारा शुरू किया गया था। जुलूस में शामिल मशाल परंपरा का हिस्सा मौलाना ने बताया कि पहले जब बिजली नहीं हुआ करती थी, तो इस जुलूस के आगे 300 लोग मशाल लेकर चलते थे। अब चारों तरफ लाइट रहती है, फिर भी पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए आज भी कुछ लोग मशाल लेकर चलते हैं। मशाल और अलम इस जुलूस की विशेषता है। जो नौजवान अलम लेकर चलते हैं उनपर मौला अब्बास कि विशेष कृपा होती है। 3 दिन तक पानी बंद रहा मौलाना जवाद। के बताया कि हजरत अब्बास हजरत इमाम हुसैन के छोटे भाई थे, जिनको अलम (इस्लामी झंडा) की जिम्मेदारी मिली थी। साथ ही दूसरे लोगों की सुरक्षा कर रहे थे। यजीद और उसके फौज द्वारा हजरत इमाम हुसैन और उनके तमाम साथियों पर तीन दिन तक पानी बंद रखा गया। जिसके चलते छोटे बच्चे प्यास कि शिद्दत से तड़पने लगे और हजरत अब्बास नहरे फरात (दरिया) पर पानी लेने पहुंचे । पानी लेकर लौट रहे थे तो चारों तरफ से उनके ऊपर तीर की बारिश कर दी गई और उनके बाजू (हाथ) कट गए हजरत अब्बास शहीद हो गए उनकी याद में यह जुलूस निकाला जाता है। 60 सालों लग रहा है पियाऊ अंजुमन दरबार-ए-हैदरी ने दरिया वाली मस्जिद के बाहर सबील ( पियाऊ ) का आयोजन किया। जिसमें संगठन के अध्यक्ष फजल अब्बास और सरफराज अली तमाम लोगों को शर्बत और अन्य सामग्री बांट रहे थे। सरफराज अली ने कहा कि यह सबील का सिलसिला विगत 60 सालों से चल रहा है। कर्बला में हजरत इमाम हुसैन को 3 दिन तक भूखा प्यासा रखा गया था उनकी याद में हम लोग यहां तमाम लोगों को शरबत पानी और खाने का सामान बांटते हैं। प्यासे को पानी पिलाना और भूखे को भोजन खिलाना सबसे अधिक पुण्य का काम है। 

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