अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल का असल उत्तराधिकारी कौन? ये सवाल अब भी बना हुआ है। अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल ने काफी हद तक ये साबित करने की कोशिश तो की है कि वही असली वारिस हैं, लेकिन अपनी ही मां कृष्णा और सगी बहन पल्लवी की खिलाफत ने साफ कर दिया है कि अभी विरासत की जंग थमी नहीं है। कांग्रेस और बसपा जैसे राष्ट्रीय दल को पछाड़कर प्रदेश की सियासत में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी अपना दल (एस) के अंदरखाने क्या सुलग रहा है? सरकारी नौकरी छोड़कर पार्टी की कमान संभालने वाले यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल की एंट्री से ऐसा क्या बदल गया कि पार्टी के मजबूत चेहरे एक–एक कर छोड़कर जाने लगे? बागियों के अपना मोर्चा का वजूद क्या? उसके नेताओं में कितना दम है? अनुप्रिया पति आशीष का कद घटा कर क्या सियासी संदेश देना चाहती हैं? पढ़िए संडे बिग स्टोरी में… तीन दिन में तीन बड़े सियासी उलट–फेर ओबीसी में यादवों के बाद कुर्मी समुदाय सबसे प्रभावशाली जाति
उत्तर प्रदेश में कुर्मी समुदाय (लगभग 6%) को यादवों (लगभग 9%) के बाद दूसरा सबसे प्रभावशाली ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समूह माना जाता है। सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल सपा (समाजवादी पार्टी) दोनों के पास कुर्मी सहयोगी हैं। भाजपा के पास अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाला अपना दल (एस) है, जबकि सपा के पास अपना दल (के) है, जिसका नेतृत्व उनकी मां कृष्णा पटेल करती हैं, और जिसे उनकी दूसरी बेटी पल्लवी का समर्थन प्राप्त है। दोनों गुट अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल की विरासत का दावा करते हुए पारिवारिक झगड़े में उलझे हुए हैं। नाटकीय ढंग से हुई थी पटेल परिवार में आशीष की एंट्री
सोनेलाल पटेल के परिवार में आशीष पटेल की एंट्री के बाद ही विवाद शुरू होने की बात कही जाती है। खुद सोनेलाल की पत्नी कृष्णा पटेल, उनकी बड़ी बेटी पारुल और पल्लवी पटेल भी अक्सर इसका आरोप लगाती रहती हैं। इस परिवार के एक करीबी के मुताबिक, आशीष पटेल की इस परिवार में एंट्री भी नाटकीय ढंग से हुई थी। डॉ. सोनेलाल पटेल की 4 बेटियों में सबसे बड़ी पारुल, फिर पल्लवी, अनुप्रिया और सबसे छोटी अमन पटेल हैं। पारुल की शादी रीवा में हुई है। पति सरकारी नौकरी में हैं। ये परिवार गैर राजनीतिक है। बात 2009 की है। सोनेलाल पटेल अपनी दूसरी नंबर की बेटी पल्लवी की शादी के लिए रिश्ता तलाश रहे थे। उसी क्रम में उन्हें चित्रकूट निवासी आशीष पटेल के बारे में पता चला। आशीष पटेल तब जल निगम में जेई (जूनियर इंजीनियर) थे। रिश्ते की बात चली, लेकिन शादी पल्लवी की बजाय तीसरे नंबर की बेटी अनुप्रिया पटेल से हुई। शुरू में सोनेलाल तैयार नहीं थे, उनका तर्क था कि बड़ी बेटी पल्लवी के रहते कैसे छोटी बेटी अनुप्रिया की शादी कर दें। लेकिन करीबियों ने समझाया कि लड़का पढ़ा–लिखा है और सरकारी जॉब में है। फिर वे मान गए। इस तरह 27 सितंबर 2009 को पल्लवी से पहले उनकी छोटी बहन अनुप्रिया की शादी हो गई। सोनेलाल पटेल की मौत के बाद पटेल कुनबे में शुरू हुआ मतभेद
अनुप्रिया की शादी के महज 22 दिनों बाद 18 अक्टूबर 2009 को कानपुर में हुई एक सड़क दुर्घटना में सोनेलाल पटेल की मौत हो गई। उनकी मौत को परिवार और समर्थकों ने साजिश मानते हुए तब सीबीआई जांच की मांग उठाई थी। ये मांग करने वालों में तब अनुप्रिया पटेल भी शामिल थीं। खैर, यहां हम बात पटेल कुनबे में मतभेद बढ़ने की कर रहे हैं। डॉ. सोनेलाल पटेल के निधन के बाद उनकी विरासत की जंग अर्थी उठने के साथ ही शुरू हो गई थी। डाॅ. सोनेलाल पटेल को उनकी चारों बेटियों ने कंधा दिया। बात जब मुखाग्नि देने की आई तो पल्लवी आगे बढ़ीं, लेकिन बताते हैं कि आशीष पटेल ने बड़े शातिराना ढंग से पल्लवी को पीछे कर अनुप्रिया के हाथ में मुखाग्नि की आग थमा दी। अनुप्रिया के मुखाग्नि देते ही समर्थकों की ओर से नारेबाजी हुई–’अनुप्रिया तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।’ इसके साथ ये भी तय हो गया कि सोनेलाल पटेल की राजनीतिक वारिस अब अनुप्रिया होंगी। सोनेलाल पटेल के जिंदा रहते अनुप्रिया राजनीति से दूर नोएडा में पढ़ाती थीं। पर उनकी मौत के बाद न चाहते हुए भी उन्हें राजनीति में सक्रिय होना पड़ा। परिवार के करीबी बताते हैं कि इसके लिए आशीष ने ही अनुप्रिया को तैयार किया था। अपना दल की कमान सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल ने संभाली और अनुप्रिया को राष्ट्रीय महासचिव का पद मिला। 2012 में वाराणसी जिले की रोहनिया विधानसभा सीट से अनुप्रिया पटेल पहली बार विधायक चुनी गईं। पटेल परिवार से पहली बार कोई जनप्रतिनिधि चुना गया था। 2014 लोकसभा चुनाव के बाद परिवार में बढ़ने लगा विवाद वर्ष 2014, तब देश में कांग्रेस के 10 वर्षों के शासन के बाद एंटी इनकंबेंसी का दौर था। भाजपा नरेंद्र मोदी को चुनावी कैंपेन का प्रमुख बनाकर संकेत दे चुकी थी कि बहुमत मिलने पर उसकी पार्टी से वही पीएम होंगे। भाजपा के लिए यूपी सबसे कमजोर किला था। ऐसे में अमित शाह को इस सूबे की चुनावी कमान सौंपी गई। अमित शाह ने अपना दल से गठबंधन का फैसला लिया। बातचीत अपना दल की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पटेल से हुई थी। दोनों दलों के बीच गठबंधन की घोषणा दिल्ली में होनी थी। भाजपा की तरफ से मुख्तार अब्बास नकवी और अपना दल की ओर से कृष्णा पटेल को उपस्थित होना था। पर आखिरी समय में इस बैठक में अनुप्रिया पटेल पहुंचती हैं। बताते हैं कि कृष्णा पटेल किसी कारण से नहीं पहुंच पाईं थीं। हालांकि कृष्णा पटेल आरोप लगाती हैं कि इसमें साजिश हुई थी। जानबूझकर मेरे ड्राइवर को छुट्टी पर भेज दिया गया था। मैं ऑटो से पहुंची, लेकिन समय से नहीं पहुंच पाई। गठबंधन में अपना दल को लोकसभा की 2 सीटें मिलीं। पहली मिर्जापुर की और दूसरी प्रतापगढ़ की सीट। कृष्णा पटेल खुद मिर्जापुर से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहती थीं। खैर अनुप्रिया की जिद के चलते कृष्णा ने कदम खींच लिए। इस तरह अनुप्रिया प्रत्याशी बनीं। समझौते में मिली दूसरी सीट प्रतापगढ़ लोकसभा से पार्टी ने कुंवर हरिवंश सिंह को प्रत्याशी बनाया। बताते हैं कि इसके एवज में पार्टी फंड में 2 करोड़ रुपए मिले थे। कृष्णा पटेल के मुताबिक ये रकम आशीष और अनुप्रिया ने खुद रख लिए। लोकसभा चुनाव परिणाम आया तो अपना दल ने दोनों सीटें जीत लीं। इसके चलते अनुप्रिया को रोहनिया विधानसभा से इस्तीफा देना पड़ा। अनुप्रिया चाहती थीं कि उनकी खाली सीट से पति आशीष पटेल चुनाव लड़ें, लेकिन कृष्णा पटेल की अध्यक्षता वाली पार्टी की गवर्निंग बॉडी ने इससे इनकार कर दिया और वे खुद रोहनिया से अक्टूबर 2014 में विधानसभा का उप चुनाव लड़ीं। बताया जाता है कि पार्टी में अनुप्रिया और आशीष के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए ऐसा किया गया। मां कृष्णा पटेल और छोटी बहन पल्लवी पटेल उनके बढ़ते कद से सहज नहीं थीं। कृष्णा पटेल ने रोहनिया से उप चुनाव लड़ा, लेकिन अनुप्रिया का पूरी तरह सहयोग नहीं मिला। इसके चलते वे चुनाव हार गईं। इस चुनाव के नतीजे ने परिवार का तनाव सतह पर ला दिया। कृष्णा ने खुलकर आरोप लगाए कि अनुप्रिया और आशीष के चलते वे चुनाव हारीं। पल्लवी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने पर बढ़ा विवाद, दो फाड़ हुई पार्टी
पार्टी में अनुप्रिया और दामाद आशीष की दखलअंदाजी पर अंकुश लगाने के इरादे से कृष्णा पटेल ने पल्लवी पटेल को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। अनुप्रिया ने यह कहते हुए इसका विरोध किया कि पार्टी के संविधान में उपाध्यक्ष पद की व्यवस्था ही नहीं है। दूसरा गठबंधन के वक्त बीजेपी की ओर से आश्वासन दिया गया था डॉ. सोनेलाल पटेल की मौत की सीबीआई जांच कराई जाएगी। पर केंद्र में मंत्री बनने के बाद भी अनुप्रिया पटेल ने इस मामले में कोई तेजी नहीं दिखाई। इसे लेकर भी परिवार में विवाद बढ़ता गया। स्थिति यह हो गई कि कृष्णा पटेल ने बेटी अनुप्रिया को राष्ट्रीय महासचिव पद से हटाने के साथ पार्टी से बाहर कर दिया। अनुप्रिया ने पार्टी पदाधिकारियों की मदद से खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित करते हुए मां कृष्णा पटेल को बाहर कर दिया। 2016 में दोनों गुट पार्टी पर दावा करते हुए हाईकोर्ट पहुंच गए, जहां यह मामला अब भी विचाराधीन है। ऐसे में चुनाव आयोग ने अपना दल का सिंबल फ्रीज कर दिया। इसके बाद दोनों गुटों की ओर से अलग–अलग पार्टी का गठन किया गया। 14 दिसंबर 2016 को अनुप्रिया पटेल द्वारा अपना दल (सोनेलाल) और 2019 में कृष्णा पटेल की ओर से अपना दल (कमेरावादी) का गठन किया गया। अपना दल (एस) के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष जवाहर लाल पटेल बने। 2017 में भाजपा और अपना दल (एस) में हुआ समझौता
2017 का विधानसभा चुनाव आया। भाजपा ने अनुप्रिया के गुट वाले अपना दल (एस) से समझौता किया। भाजपा के समर्थन से अपना दल एस पहली बार 9 विधायकों को जिताने में सफल रहा। ये संख्या कांग्रेस के 7 विधायकों से ज्यादा थी। इस जीत से तय माना जाने लगा कि डॉ. सोनेलाल पटेल की राजनीतिक विरासत अब अनुप्रिया ही संभालेंगी। पर कहानी में अभी कई मोड़ आने थे। गठबंधन में समझौते के तहत तय हुआ था कि अपना दल को एक सीट एमएलसी की मिलेगी, जिस पर अनुप्रिया के पति आशीष प्रत्याशी होंगे। साथ में एक राज्यमंत्री और कैबिनेट का पद मिलेगा। राज्यमंत्री के तौर पर सपा से आए राजकुमार जैकी को कारागार मंत्री बनाया गया। कैबिनेट मंत्री का पद रिक्त रखा गया कि आशीष पटेल के आने पर ये भरा जाएगा। 9 मार्च 2017 को अपना दल (एस) की लखनऊ के गांधी भवन में राष्ट्रीय स्तर की बैठक हुई। इस बैठक में पहली बार आशीष पटेल की एंट्री होती है। वे उसी दिन सरकारी नौकरी से इस्तीफा देते हैं और पार्टी की सदस्यता लेने के साथ ही उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिए जाते हैं। 2018 में भाजपा ने अपने वादे के मुताबिक आशीष पटेल को एमएलसी बनाया। हालांकि कैबिनेट मंत्री बनने का सपना 2022 में ही पूरा हो पाया। 2019 लोकसभा के समय अनुप्रिया ने संभाली पार्टी की कमान
2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी और अपना दल (एस) के बीच गठबंधन हुआ। इस बार मिर्जापुर के साथ राबर्ट्सगंज लोकसभा की सुरक्षित सीट समझौते में मिली। मिर्जापुर से अनुप्रिया तो राबर्ट्सगंज से पकौड़ी लाल कोल सांसद चुने गए। इससे पहले वह सपा से 2009 में सोनभद्र से सांसद रह चुके थे। लोकसभा चुनाव से पहले ही अनुप्रिया पटेल ने पार्टी की कमान संभाली और राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गईं। इसके बाद आशीष पटेल राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर कार्य करते रहे। हालांकि पार्टी संविधान में राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जैसा कोई पद नहीं था। 2022 में दोनों दल गठबंधन के तहत यूपी विधानसभा चुनाव में फिर उतरे। इस बार अपना दल के 13 विधायक चुने गए। समझौते के तहत पार्टी को एक राज्य मंत्री, एक एमएलसी और 8 दर्जा प्राप्त मंत्री (निगम अध्यक्ष) का पद देने की पेशकश की गई थी। लेकिन आशीष पटेल की तरफ से कहा गया कि हमें सिर्फ एक कैबिनेट मंत्री का पद दे दिया जाए। वे खुद यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। 2024 में बड़ी मुश्किल से जीतीं अनुप्रिया, कोल परिवार में बढ़ी दरार
आशीष पटेल की सक्रियता बढ़ने के साथ ही पार्टी में कलह भी बढ़ने लगी। 2022 के विधानसभा चुनाव में अपना दल (एस) के सांसद पकौड़ी लाल कोल के बेटे राहुल कोल विधायक चुने गए। लेकिन उनकी बीमारी के चलते निधन हो गया। उप चुनाव की बारी आई तो पार्टी ने पकौड़ी कोल की इच्छा के विपरीत राहुल कोल की पत्नी रिंकी कोल को प्रत्याशी बना दिया। पकौड़ी यहां से छोटे बेटे को प्रत्याशी बनाना चाहते थे। खैर परिणाम आया तो रिंकी कोल विधायक चुन ली गईं। लेकिन इस परिणाम ने कोल परिवार में दरार पैदा कर दी। 2024 लोकसभा का चुनाव आया तो पार्टी ने पकौड़ी लाल काेल का टिकट काट दिया। इसकी बजाय रिंकी कोल को लोकसभा का प्रत्याशी बनाया। इससे पकौड़ी कोल नाराज हो गए। मिर्जापुर, सोनभद्र जिलों में कोल आबादी में पकौड़ी कोल परिवार का बड़ा दखल है। पकौड़ी कोल ने बहू का विरोध किया और वो चुनाव हार गईं। खुद अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर में बड़ी मुश्किल से चुनाव जीत पाईं। अब पढ़िए आशीष की पार्टी में एंट्री से पार्टी क्यों बिखरने लगी? अपना दल (एस) पार्टी छोड़ने वालों में ये नेता भी शामिल- अपना मोर्चा बनाने वालों में कितना दम
अपना दल से निकाले गए और खुद पार्टी छोड़ने वालों ने मिलकर 1 जुलाई को अपना मोर्चा बनाया है। इसमें अपना दल बलिहारी के धर्मराज पटेल, राष्ट्रीय जनसरदार पार्टी के हेमंत चौधरी, छत्रपति शिवाजी महाराज फाउंडेशन के बौद्ध अरविंद पटेल, अपना दल यू के बच्चा सिंह पटेल और बृजेंद्र प्रताप सिंह जैसे नेता शामिल हैं। अपना मोर्चा के सूत्रों की मानें तो जल्द ही इस मोर्चे में पकौड़ी कोल, पल्लवी पटेल वाली अपना दल (कमेरा-वादी) सहित और दूसरे नेता भी जुड़ सकते हैं। अपना मोर्चा के नेताओं की इनसे लगातार चर्चा चल रही है। अपना मोर्चा सबसे पहले पंचायत चुनाव में अपनी ताकत दिखाएगा। अपना मोर्चा की ओर से भाजपा–सपा से दोनों से गठबंधन का विकल्प खुला रखा जाएगा। मोर्चा में शामिल सिर्फ अपना दल बलिहारी ही चुनाव लड़ी है। हालांकि कोई चुनावी सफलता नहीं मिली है। ———————— ये खबर भी पढ़ें… धर्म जानने के लिए होटल कर्मचारियों की पैंट उतरवाई:यूपी में कांवड़ यात्रा से पहले हिंदू संगठनों ने चलाया चेकिंग अभियान ‘एक लड़का हमारे होटल पर टॉयलेट साफ-सफाई करता था। वो उसको अंदर ले गए। धर्म पहचानने के लिए उसकी पैंट उतारी गई। वो पूछ रहे थे कि आप मुसलमान तो नहीं हो? मैं कहती हूं कि हमारा हाथ काटकर देखो। जब खून के रंग में फर्क नहीं तो और बाकी क्या फर्क है।’ यह कहना है होटल कर्मचारी सुमन का। कांवड़ यात्रा को लेकर दिल्ली-देहरादून हाईवे के होटल-ढाबों पर कुछ हिंदू संगठनों ने चेकिंग अभियान चलाया हुआ है। पढ़ें पूरी खबर

अनुप्रिया ने पति का घटाया कद, क्या पार्टी बचेगी?:आशीष पटेल की एंट्री से पहले परिवार बिखरा, अब दल में बगावत; विरासत पर भी छाया संकट
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