केंद्र सरकार की रिवैम्प्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (RDSS) के तहत 44,094 करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद बिजली व्यवस्था में सुधार नहीं दिखा। UPPCL के अध्यक्ष डॉ. आशीष कुमार गोयल ने समीक्षा बैठक में यह बात कबूल की, लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह निजीकरण का नरेटिव सेट करने की कोशिश है? उपभोक्ता परिषद ने प्रबंधन पर निशाना साधते हुए तत्काल इस्तीफे की मांग की है। साथ ही, स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना में 8,500 करोड़ रुपए के अतिरिक्त खर्च और ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के आरोपों ने विवाद को और हवा दी है। क्या है पूरा मामला? पढ़िए इस रिपोर्ट में… 44,094 करोड़ खर्च, फिर भी बिजली व्यवस्था जस की तस पावर कॉरपोरेशन ने RDSS योजना और बिजनेस प्लान के तहत करोड़ों रुपए खर्च किए। केंद्र सरकार ने स्मार्ट प्रीपेड मीटर के लिए 18,885 करोड़ रुपए स्वीकृत किए थे, लेकिन UPPCL ने 27,342 करोड़ रुपए के टेंडर जारी किए, यानी 8,500 करोड़ रुपए ज्यादा। 5 जुलाई 2025 को समीक्षा बैठक में अध्यक्ष डॉ. आशीष गोयल ने माना कि इतनी बड़ी राशि खर्च होने के बावजूद बिजली व्यवस्था में सुधार नहीं दिखा। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने इसे प्रबंधन की नाकामी करार देते हुए कहा, “सबसे पहले प्रबंधन को इस्तीफा देना चाहिए। इतनी बड़ी राशि खर्च कर सुधार न लाना शर्मनाक है।” स्मार्ट प्रीपेड मीटर, 8,500 करोड़ का अतिरिक्त खर्च केंद्र सरकार ने स्मार्ट प्रीपेड मीटर के लिए 18,885 करोड़ रुपए स्वीकृत किए थे, लेकिन UPPCL ने 27,342 करोड़ रुपए के टेंडर जारी किए। विभाग ने 40-45% ऊंची दरों पर टेंडर दिए गए। मनमाने तरीके से नए और अनुभवहीन ठेकेदारों को काम सौंपा गया, जिनमें कई ने चीनी कंपोनेंट्स का इस्तेमाल किया। पूर्व में इस पर कई विशेषज्ञों ने सवाल उठाते हुए कहा था कि– “घटिया स्मार्ट मीटर उपभोक्ताओं के लिए सिरदर्द बनेंगे, और यह योजना जल्द फ्लॉप हो सकती है।” क्या है स्मार्ट मीटर का मसला? स्मार्ट प्रीपेड मीटर से बिजली चोरी रोकने और रियल-टाइम बिलिंग का दावा किया गया था। लेकिन मीटरों की गुणवत्ता खराब है, और बिलिंग में गड़बड़ी की शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं। मध्यांचल में स्मार्ट मीटर टेंडर रद्द होने के बाद भी अन्य डिस्कॉम में ऊंची दरों पर काम जारी है। ठेकेदारों पर मेहरबानी, उपभोक्ताओं का शोषण? पावर कॉरपोरेशन पर बड़े ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने का आरोप लग रहा है। जब टेंडर फाइनल हो रहे थे, तो ऊर्जा विशेषज्ञों ने ऊंची दरों और गलत ठेकेदारों का मुद्दा उठाया, लेकिन प्रबंधन बड़े ठेकेदारों के चंगुल में था।” RDSS के तहत 44,094 करोड़ और बिजनेस प्लान में 4,000-5,000 करोड़ रुपए खर्च हुए, लेकिन परिणाम शून्य। उपभोक्ता परिषद ने आरोप लगाया कि ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए जानबूझकर ऊंची दरों पर टेंडर दिए गए। इस तरह उपभोक्ताओं की आ रहीं शिकायतें: निजीकरण का नरेटिव या प्रबंधन की नाकामी? पावर कॉरपोरेशन के 42 जिलों में निजीकरण की तैयारी ने विवाद को और बढ़ाया है। उपभोक्ता परिषद ने विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131(2) के उल्लंघन का आरोप लगाया, दावा किया कि निजीकरण से बड़े निजी घरानों को फायदा होगा। वर्मा ने कहा, “प्रबंधन की नाकामी को छिपाने के लिए निजीकरण का बहाना बनाया जा रहा है। यह सरकारी धन का दुरुपयोग है।” परिषद ने राष्ट्रपति और पीएमओ को पत्र लिखकर सीबीआई जांच की मांग की है। पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने भी निजीकरण का विरोध किया, सवाल उठाया कि PPP मॉडल में आरक्षण का क्या होगा? कर्मचारियों का कहना है कि प्रबंधन निजीकरण के लिए अभियंताओं पर दबाव बना रहा है। प्रबंधन इस्तीफा दे या सीबीआई जांच हो? उपभोक्ता परिषद ने पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन को निशाने पर लिया। वर्मा ने कहा, “समीक्षा बैठकों का कीर्तिमान बनाने वाला प्रबंधन अब कह रहा है कि सुधार नहीं दिखा। अगर इतने खर्च के बाद भी नतीजा शून्य है, तो प्रबंधन तत्काल इस्तीफा दे।” परिषद ने मांग की कि निजीकरण और स्मार्ट मीटर टेंडर में अनियमितताओं की गहन जांच हो। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर प्रबंधन की जवाबदेही तय नहीं हुई, तो उपभोक्ताओं पर बिजली दरों का बोझ और बढ़ेगा।

यूपी पावर कॉरपोरेशन में बवाल:44,094 करोड़ खर्च, फिर भी बेपटरी बिजली व्यवस्था, प्रबंधन पर इस्तीफे का दबाव, स्मार्ट मीटर योजना फ्लॉप?
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